ऐसा नहीं है कि
तुम अब बेअसर हो,
हाँ, मगर अब फर्क
कुछ कम पड़ता है।
अब भी तुम्हारा
नाम कहीं देखकर,
दिल तेज धड़कता है।
अब भी तुम्हारी इक झलक के लिए
ताका-झांकी करता है।
हाँ, मगर अब
बेचैन सा कम रहता है।
वो आधी सुबह, आधी शाम
की छेड़ा छाड़ी, घंटो इंतजार।
सब याद है अब भी,
हाँ, मगर अब तुम्हारा अक्स
कुछ धुंदला सा गया है।
सोचा नहीं था कि इस
तरह तुम बदल जाओगी।
तुमसे एक लफ्ज सुनने
और अपने किस्से सुनाने
को भी तरस जाऊंगा।
बहुत कुछ बदल गया है,
और कुछ बातों का जिक्र,
ना हो तो ही अच्छा है।
तुम्हें भूलना मुमकिन नही है,
तुम्हे दूसरों के साथ खुश देखकर
दिल अब भी जलता है।
मगर हाँ,अब फर्क कम पड़ता है।
Friday, 14 July 2017
अब फर्क कम पड़ता है
Wednesday, 12 July 2017
आपके शहर में
तोड़कर हर कसम आपके शहर में
आ गए आज हम आपके शहर में...........
एक ना एक दिन मुलाकात हो जाएगी
आते रहते हैं हम आपके शहर में......
जो मेरे आंसुओं का लिखा पढ़ सके
लोग ऐसे हैं कम आपके शहर में.......
शहर ये आपका है हमारा नहीं
भूल जाते हैं आपके शहर मंे.......
ऐसे वैसे कई देखते-देखते
हो गए मोहतरम आपके शहर में.........
आप इतनी मोहब्बत करेंगे अगर
मर ही जायेंगे हम आपके शहर में........
होके वो रह गया आपके शहर का
जिसने रखा कदम आपके शहर में......
ये तमन्ना है राशिद चलेंगे कभी
आपके साथ, हम आपके शहर में।।
आ गए आज हम आपके शहर में...........
एक ना एक दिन मुलाकात हो जाएगी
आते रहते हैं हम आपके शहर में......
जो मेरे आंसुओं का लिखा पढ़ सके
लोग ऐसे हैं कम आपके शहर में.......
शहर ये आपका है हमारा नहीं
भूल जाते हैं आपके शहर मंे.......
ऐसे वैसे कई देखते-देखते
हो गए मोहतरम आपके शहर में.........
आप इतनी मोहब्बत करेंगे अगर
मर ही जायेंगे हम आपके शहर में........
होके वो रह गया आपके शहर का
जिसने रखा कदम आपके शहर में......
ये तमन्ना है राशिद चलेंगे कभी
आपके साथ, हम आपके शहर में।।
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