आवश्यकता है.
दुनिया के सारे फोटोग्राफर्स की ताकि जब लॉकडाउन खुले, दुनिया खिले और लोग गले मिलें तो उन पलों की तस्वीरें उतारी जा सकें। फोटोग्राफर्स के पास ये हुनर हो कि वो उस जगह पर ऐसे मौजूद रहें, जैसे कोई पेड़ चुपचाप सालों से खड़ा हो. इन फोटोग्राफर्स का काम होगा कि मुस्कुराते हुए आंसुओं के गिरने और गले मिलने को तस्वीरों में ऐसे पकड़ें जैसे एक सख्त बड़ी उंगली कोई नन्हा बच्चा पकड़ता और बताता है कि जिंदगी शुरू में कितनी मुलायम थी।
आवश्यकता है.
दुनिया के सारे सच्चे हिंदुओं की ताकि जब लॉकडाउन खुले और कोई टोपी लगाए सब्जी वाला आकर चिल्लाए तो सीढ़िया उतरते लोग दौड़ पड़ें। भले ही ये कहें कि अरे मुल्ला जी, आलू सही सही लगा लो। फिर हँसते-हँसते बात यूं सेट हो कि अच्छा पंड्डी जी, धनिया फ्री में उठा लो। थोड़े उस वैराइटी के हिंदू भी चाहिए जो किसी मुसलमान के खांसते-खांसते थूकने पर डरे नहीं, बल्कि देखते ही दौड़कर जाएं और पीठ सहलाने लगें, जैसे मां सहलाती हैं, जो मुस्लिम नाम वाले डिलिवरी बॉय को सामान लेने के बाद जब लौटाएं तो ये कहें-बेटा ठंडा पानी तो पी ले।
आवश्यकता है.
दुनिया के उन सारे इलाकों में रहने वाले उन लोगों की जिनके द्वारा डॉक्टरों, पुलिसवालों पर पथराव हुए। ताकि जब लॉकडाउन खुले तो उन बहादुर डॉक्टरों, पुलिसवालों और नर्सों से माफी मांगी जा सके जो गए तो थे जान बचाने लेकिन बड़ी मुश्किल से अपनी ही जान बचाकर घायल लौटे थे।
आवश्यकता है.
दुनिया की सारी जनता की ताकि जब लॉकडाउन खुले और सरकारें चुनावी रैलियों की तरफ बढ़ें. बसों, ट्रेनों को बुक करके भीड़ जुटाई जा रही हो. तब आवाम खड़ी होकर पूछ सके कि बस के कागज दिखाओ, इनकी फिटनेस बतला।
आवश्यकता है.
दुनिया के सारे थाली बजाने, फूल बरसाने और दीया जलाने वालों की ताकि जब लॉकडाउन खुले तो उन पलायन की प्रेग्नेंट औरतों, कंधे पर पत्नी बैठाए मर्दों, साइकिल चलाकर घायल पिता को घर पहुंचाने वाली बच्चियों, बेटे की मौत पर फोन पर रोने वाले रामपुकार यादवों को पुकारा जा सके।
आवश्यकता है.
दुनिया के सारे स्टैचू कहने वालों की ताकि जब लॉकडाउन खुले तो नीले आसमान, साफ नदियों, आसमां के उड़ते परिंदों, चहचहाती चिड़ियों को स्टैचू कहा जा सके. ताकि जब चिमनियों का धुआं फिर आसमान को मैला करने की ओर बढ़े तो कुदरत की खूबसूरती बचाई जा सके। खुद के इंडिविजुएल वादे रहे और ये मुरादें रहें कि अब सब बचा लेना है।
आवश्यकता है.
दुनिया के सारे बुलंद आवाज लगाने वालों की जिनकी आवाज सैकड़ों किलोमीटर दूर तक जाए है. ताकि जब लॉकडाउन खुले तो यहीं दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर जैसे शहरों से हाईवे जाती सड़कों की ओर मुंह करके चीखकर पुकारा जा सके....
ओ भईया.... लौट आओ....
माफ कर दो, तुम्हे तब रोक न ना पाए न तुम्हे घर भेज पाए ना.....
ओ भईया.... लौट आओ....
दुनिया के सारे फोटोग्राफर्स की ताकि जब लॉकडाउन खुले, दुनिया खिले और लोग गले मिलें तो उन पलों की तस्वीरें उतारी जा सकें। फोटोग्राफर्स के पास ये हुनर हो कि वो उस जगह पर ऐसे मौजूद रहें, जैसे कोई पेड़ चुपचाप सालों से खड़ा हो. इन फोटोग्राफर्स का काम होगा कि मुस्कुराते हुए आंसुओं के गिरने और गले मिलने को तस्वीरों में ऐसे पकड़ें जैसे एक सख्त बड़ी उंगली कोई नन्हा बच्चा पकड़ता और बताता है कि जिंदगी शुरू में कितनी मुलायम थी।
आवश्यकता है.
दुनिया के सारे सच्चे हिंदुओं की ताकि जब लॉकडाउन खुले और कोई टोपी लगाए सब्जी वाला आकर चिल्लाए तो सीढ़िया उतरते लोग दौड़ पड़ें। भले ही ये कहें कि अरे मुल्ला जी, आलू सही सही लगा लो। फिर हँसते-हँसते बात यूं सेट हो कि अच्छा पंड्डी जी, धनिया फ्री में उठा लो। थोड़े उस वैराइटी के हिंदू भी चाहिए जो किसी मुसलमान के खांसते-खांसते थूकने पर डरे नहीं, बल्कि देखते ही दौड़कर जाएं और पीठ सहलाने लगें, जैसे मां सहलाती हैं, जो मुस्लिम नाम वाले डिलिवरी बॉय को सामान लेने के बाद जब लौटाएं तो ये कहें-बेटा ठंडा पानी तो पी ले।
आवश्यकता है.
दुनिया के उन सारे इलाकों में रहने वाले उन लोगों की जिनके द्वारा डॉक्टरों, पुलिसवालों पर पथराव हुए। ताकि जब लॉकडाउन खुले तो उन बहादुर डॉक्टरों, पुलिसवालों और नर्सों से माफी मांगी जा सके जो गए तो थे जान बचाने लेकिन बड़ी मुश्किल से अपनी ही जान बचाकर घायल लौटे थे।
दुनिया की सारी जनता की ताकि जब लॉकडाउन खुले और सरकारें चुनावी रैलियों की तरफ बढ़ें. बसों, ट्रेनों को बुक करके भीड़ जुटाई जा रही हो. तब आवाम खड़ी होकर पूछ सके कि बस के कागज दिखाओ, इनकी फिटनेस बतला।
आवश्यकता है.
दुनिया के सारे थाली बजाने, फूल बरसाने और दीया जलाने वालों की ताकि जब लॉकडाउन खुले तो उन पलायन की प्रेग्नेंट औरतों, कंधे पर पत्नी बैठाए मर्दों, साइकिल चलाकर घायल पिता को घर पहुंचाने वाली बच्चियों, बेटे की मौत पर फोन पर रोने वाले रामपुकार यादवों को पुकारा जा सके।
दुनिया के सारे स्टैचू कहने वालों की ताकि जब लॉकडाउन खुले तो नीले आसमान, साफ नदियों, आसमां के उड़ते परिंदों, चहचहाती चिड़ियों को स्टैचू कहा जा सके. ताकि जब चिमनियों का धुआं फिर आसमान को मैला करने की ओर बढ़े तो कुदरत की खूबसूरती बचाई जा सके। खुद के इंडिविजुएल वादे रहे और ये मुरादें रहें कि अब सब बचा लेना है।
आवश्यकता है.
दुनिया के सारे बुलंद आवाज लगाने वालों की जिनकी आवाज सैकड़ों किलोमीटर दूर तक जाए है. ताकि जब लॉकडाउन खुले तो यहीं दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर जैसे शहरों से हाईवे जाती सड़कों की ओर मुंह करके चीखकर पुकारा जा सके....
ओ भईया.... लौट आओ....
माफ कर दो, तुम्हे तब रोक न ना पाए न तुम्हे घर भेज पाए ना.....
ओ भईया.... लौट आओ....