ये आखिरी कविता है मतलब आखिरी
आखिरी मतलब मै सच बोलुंगा
आखिरी मतलब मैं नहीं दूंगा कोई झूठी, तसल्ली कोई झूठा दिलाशा
कोई झूठी कसम या कोई झूठा भरोसा
आखिरी मतलब मैं नहीं करूंगा नफरतें
मैं नही भेजूंगा लानतें, नहीं करूंगा शिकायतें
आखिरी मतलब मैं हिम्मत जुटा कर सच लिखूंगा
कम अल्फाजों में बेहद लिखूंगा
आखिरी मतलब मैं बता दूंगा कि मैनें इंतजार में तूम्हें लिखा
मेरी हर तलाश में तुम थी, अपने बैकस्पेस में तुम्हे झुपाया
मेरे हर अल्फाज में तुम थी
आखिरी मतलब मैं बता दूंगा कि
हर रोज सुबह तुम्हारे मैसेज के उम्मीद में अपना फोन टटोला मैंने
हर सब उन कनवरसेशन को खोला बंद किया फिर खोला मैंने
हर रोज हर बार उसी दरवाजे को छुआ मैंने कि जानते हुए कि तुम नहीं हो यहा
फिर भी बस वहीं जा ठहरा मै
आखिरी मतलब मैं बता दूंगा तुम्हारे साथ गुजरे हर वक्त को कभी भुला नहीं मैंने
तुम्हारे बिन किसी हसीन ख्वाब देखा नहीं मैंने
आखिरी मतलब मैं तुम्हे ये भी बता दूंगा कि
तुम्हारे जाने के बाद भी अपने बाईक को कभी धोया नहीं जहां से उस सीट पर तुम्हारी खुशबू आती थी
हमारी उस रात के वस्ल के बाद अपनी उस कमीज कभी नहीं धोया उसे जिससे तुम्हारी महक आती थी
अपने बालों को उतना ही बिगाड़ रखा जितना तुम्हें रखना होता था
अपने शर्ट की स्लीव को वहीं तक लपेटा जहां तक तुम्हे ढलना होता था
आखिरी मतलब मैं बता दूंगा कि आज भी हर शाम वहीं मिलता हूं जहां हम मिला करते थे
मैं आज भी उसी मोड़ पर रूका रहता हूं जहां हम चला करते थे
मेरे हर अफसाने में आज भी नाम तुम्हारा ही रहता है
मेरे किस्सा कोई का हर लफ्ज भी आज कहानी तुम्हारी कहता हैं
आखिरी मतलब ये भी है कि मैं तुमसे कुछ सवालात करूंगा
तुम्हारे पुराने अक्स से आज फिर मुलाकात करूंगा
अच्छा बताओ ना बताओ क्या अब भी तुम वही मेरी टी-शर्ट पहतनी हो
गुस्सा आने पर अपने हाथों को किसके सीने पर पटकती हो
अच्छा बताओ ना तुम्हारे कलाई में उस कंगन का निशान बनता है
क्या तुम्हे आज भी उस किचन की खुशबू महकती है
अच्छा क्या कोई है जो तुम्हे अपने कहानी में बतौर हीर पेश करता है
क्या खुद रांझा बनकर कोई जमाने से बैर करता है
क्या कोई है जो तुम्हारे जुल्फ को अब कान के पीछे सरकाता है
या वो जो मोहब्बत के रूहानी किस्से सुनाता है
क्या कोई है जो तुम्हारे जोर से हसने पर तुम्हारा गम पहचान लेता है
या वो जो तुम्हारे सहम जाने पर तुम्हारा हाथ थाम लेता है
अच्छा क्या कोई है जो तुम्हें अपने काॅपी के आखिरी पन्ने पर लिखता है
क्या किसी को तुम्हारे आखों में अपना रहबर दिखता है
क्या कोई है जिसने तुम्हारे अंदर छुपी मासुमियत को पहचाना है
तुम्हारे यौवन से कई गुना ज्यादा तुम्हारे बचपन को जाना है
क्या कोई है जो तुम्हारे आसूंओ को पिया है
जिसने अपने सपनों से ज्यादा तुम्हारे सपनों को जीया है
क्या कोई है,
क्या कोई है जिस पर तुम्हे इश्क पर ज्यादा यकीन हुआ है
जिसने हर दफा तुम्हे नहीं तुम्हारे रूह को छुआ है
अच्छा बताओ ना क्या अब भी तुम एकदम से दूर चली जाती हो
क्या तुम अब भी सबकुछ बड़ी जल्दी भुल जाती हो
क्या अब भी तुम्हारे पर रूकने की कोई वजह नहीं होती
क्या अब तुम्हारे दिल में यादों की कोई जगह नही होती
क्या तुममे और मुझमें अब भी उतना ही फर्क है
क्या हमारी जुदाई का सिर्फ एक ही सीने में दर्द है
आखिरी मतलब ये भी है कि हां मैंने नफरतों में लिखा है तुम्हें
लेकिन इश्क तुमसे हमेशा रहा
हर रोज ताल्लुक तोड़ा है तुमसे कुछ यूं तााल्लुक हमेशा रहा
आखिरी मतलब ये भी है कि आज मैं तुम्हारे लिये दुआ करूंगा
कुछ इस तरह तुम्हे मुझसे हमेशा के लिए जुदा करूंगा
चलो तुम्हारे जिंदगी में बहार आए तुम्हारी जिंदगी गुलिश्ता हो
मेरे पास भी मैं रहूं और मेरी आखिरी कविता हो
मेरी आखिरी कविता हो....!