Sunday, 22 September 2019

कैसे मैं लिखूं तुम पर कुछ तुम तो खुद में एक रचना हो

कैसे मैं लिखूं तुम पर कुछ तुम तो खुद में एक रचना हो
थोड़ी अलहड़ थोड़ी पागल एक कुचे में भरा सागर
आंखें तेरी मदीरा की गागर
बातों में जज्बात छुपे हैं मुस्कानों में हालात छिपे हैं
थोड़ी वृद्धि, थोड़ा बुद्धि, थोड़ा भोलापन, थोड़ा बचपन
सबका तू अनोखा मिश्रण
कई राज छिपाये बैठी है,
कई दावं लगाये बैठी है
कुछ सपनों में वो जीती है



कुछ सपनों को वो जीती है
ये दुनिया के वो सारे
धोखे दो आंखों से पीती है
एक अजब-गजब सी वो कहानी
जिसने पढ़ी बस उसने जानी
सह बनती वो मेरे लिए भी वो
जब मुझे खुद से बचना हो
कैसे मैं लिखूं तुम पर कुछ तुम तो खुद में एक रचना हो।

Sunday, 8 September 2019

वो एक कप कॉफी का साथ...

बस कुछ लम्हे होते थे हमारे पास....
और उन लम्हों में करनी होती थी......
हमें हजारों बात.......!
मेरे साथ होते हुए भी....
दुसरो को देखती.......
तुम्हारी वो शरारती आंखे..
उतनी ही शरारती थी...........
तुम्हारी वो बाते...............
तुम्हारी हर बात पर.......
मेरी मुस्कराती आखों का जवाब.....
कुछ यू था......
तुम्हारे साथ एक कप कॉफी का साथ......!!

सबसे नजर हट कर....
जब तुम्हारी मुझ पर नजर टिकती थी.....
तो कुछ सहम कर तुम्हारे चहरे से....
मैं नजरे फेर लेता था......
डरता था की कही....
तुम पढ़ न लो मेरी नजरो में......
मेरी दिल की बात.............
वो तुम्हारे कुछ पूछने पर......
मेरा मुस्करा देना.............मैं कुछ कहूँगां.....
तुम्हारी नजरो का वो इन्तजार करना...
नही पता की कॉफी कैसी थी......
नही जानता की......
वो वक्त क्यों इतनो जल्दी गुजर रहा था....
मैं उस गुजरते वक्त को थामना चाहता था........
तुम्हारे हाथ को थाम कर........
कुछ देर और बैठना चाहता था..........
कुछ यू था......
तुम्हारे साथ, एक कप कॉफी का साथ......!!