Sunday, 22 September 2019

कैसे मैं लिखूं तुम पर कुछ तुम तो खुद में एक रचना हो

कैसे मैं लिखूं तुम पर कुछ तुम तो खुद में एक रचना हो
थोड़ी अलहड़ थोड़ी पागल एक कुचे में भरा सागर
आंखें तेरी मदीरा की गागर
बातों में जज्बात छुपे हैं मुस्कानों में हालात छिपे हैं
थोड़ी वृद्धि, थोड़ा बुद्धि, थोड़ा भोलापन, थोड़ा बचपन
सबका तू अनोखा मिश्रण
कई राज छिपाये बैठी है,
कई दावं लगाये बैठी है
कुछ सपनों में वो जीती है



कुछ सपनों को वो जीती है
ये दुनिया के वो सारे
धोखे दो आंखों से पीती है
एक अजब-गजब सी वो कहानी
जिसने पढ़ी बस उसने जानी
सह बनती वो मेरे लिए भी वो
जब मुझे खुद से बचना हो
कैसे मैं लिखूं तुम पर कुछ तुम तो खुद में एक रचना हो।

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