Saturday, 5 August 2017

मित्रता की कसौटी


जन्म लेते ही कितने रिश्ते बन जाते हैं मां-पिता, भाई-बहन, दादा-दादी, नाना-नानी आदि। पर एक रिश्ता ऐसा है, जो जन्मजात नहीं है। वह है दोस्ती की। बचपन में स्कूली दोस्त होते हैं। कोई ‘बेस्ट फ्रेन्ड’ होता है, तो कोई खेल का साथी। समय के साथ बदलाव आता रहता है। हालांकि इन्हीं में कोई एक बड़े होने पर भी बना रहता है, वहीं लंगोटिया यार कहलाता है। अधिकतर दोस्त बड़े होने पर बनते हैं, और वे टिकाऊ होते हैं। अक्सर दोस्त हमारे पूरक होते हैं। जो विशेषताएं हमारे व्यक्तित्व में नहीं होती, यदि वे किसी दूसरे में मिलते हैं, तो परस्पर आकषर्ण स्वाभाविक है। महत्वकांक्षी चन्द्रगुप्त ने युक्तिवान चाणक्य से मित्रता की। गंभीर प्रकृति के अकबर के दोस्त चतुर व विनोदी बिरबल थे। किसी मनुष्य का स्वभाव जानने के लिए उसके दोस्तों की उसबे बारे में क्या राय है, यह जानना काफी होता है। 

धीरे-धीरे गहन होती दोस्ती कभी टूटती नहीं। कहते हैं कि दोस्ती एक वृक्ष की तरह होती है। शुरू में उसकी देखरेख करनी पड़ती है। फलने-फूलने पर वही जीवन भर हमें शीतल छाया प्रदान करता है। दोस्ती करने से पहले यह निश्चित कर लेना जरूरी है कि निःस्वार्थ व्यक्ति है। कहीं हमारी धन-संपदा तो उसके आकषर्ण का केन्द्र तो नहीं। ऐसे लोग बुरे दिन आने पर छिटक कर अलग हो जाते हैं। पंजाबी की एक कहावत है ‘लड्डू मुक गए याराने टूट गए, ते सारी लड्डुआं दी’ यानि दोस्ती लड्डू खाने के लिए थी, वे खत्म हुए तो यारी भी खत्म। ऐसे दोस्तों से बचने में ही भलाई है। रामचरितमानस में राम ने सुग्रीव की व्यथा-कथा सुनकर उसकी सहायता का वचन दिया और दोस्ती की कसौटी को भी पूरा किया। उनके अनुसार, जो अपने दोस्त के दुख से दुखी नहीं होता- उसे देखना भी पाप है। दूसरी ओर, जो अपने पर्वत समान दुख को भूल और दोस्त के धूल समान दुख को अपना सा समझता है, वही सच्चा दोस्त बनने के लायक होता है।

Happy Friendship Day 

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