Sunday, 22 October 2017

मैं तुम्हे फिर मिलूंगा

मैं तुम्हे फिर मिलूंगा
कहां कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरूंगा
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीन बन
खामोश तुझे देखता रहूंगा
मैं तुम्हे फिर मिलूंगा
कहां कैसे पता नहीं
या सूरज की लौ बन कर
तेरे रंगों में घुला रहूंगा
या रंगों की बांहों में बैठकर
तेरे केनवास पर बिछ जाउंगा
पता नहीं कहां किस तरह
पर तुझे जरूर मिलूंगा
या फिर एक चश्मा बन
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूंदे
तेरे बदन पर मलूंगा
और एक शीतल एहसास बनकर
तेरे से सीने से लगूंगा
मैं और तो कुछ नहीं जानता
पर इतना जानता हूं कि
वक्त जो भी करेगा
यह जन्म मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म खत्म होता है
तो सब कुछ खत्म हो जाता है
पर यादों के धागे
कायनात के लम्हों की तरह होते हैं
मैं उन लम्हों को चुनूंगा
उन धागों को समेट लूंगा
मैं तुम्हे फिर मिलूंगा
कहां कैसे पता नहीं
लेकिन
मैं तुम्हे फिर जरूर मिलूंगा।

Friday, 20 October 2017

तुम्हारा ही कहलायेगा......!!!


मैं आज भी इक दीया,
तुम्हारी दहलीज पर रख आता हूँ,
कि मेरे दीये का उजाला,
तुम्हे अंधेरो से बचायेगा.....
जब भी दीये की लहराती,
जलती बाती पर तुम्हारी नजर जायेगी,
तुम्हे कुछ याद आयेगा और,
होंठो पर तुम्हारे मुस्कान आएगी..
मैं कहूँ न कहूँ किसी से,
तुम बताओ या ना बताओ किसी से..
तुम्हारी दहलीज़ पर रखा मेरा दीया,
तुम्हारा ही कहलायेगा......!!!

Tuesday, 17 October 2017

उसे अच्छा नहीं लगता

यह खत है उस गुलदान के नाम जिसका फूल कभी हमारा था
वो जो अब तुम उसके मुख्तार हो तो सुन लो, उसे अच्छा नहीं लगता
मेरी जान के हकदार हो तो सुन लो, उसे अच्छा नहीं लगता
कि वो जब जुल्फ बिखेरे तो बिखरी ना समझना
अगर जो माथे पर आ जाए तो बेफिक्री ना समझना
दरअसल उसे ऐसे ही पसंद है।।

उसकी खुली जुल्फों में उसकी आजादी बंद है।
जानते हो अगर वो हजार बार जुल्फें ना संवारे तो उसका गुजारा नहीं होता
वैसे दिल बहुत साफ है उसका इन हरकतों को इशारा नहीं होता
खुदा के वास्ते-खुदा के वास्ते
कभी टोक ना देना उसकी आजादी से, उसे कभी रोक ना देना
क्यों कि अब मैं नहीं तुम उसके दिलदार हो तो सुन लो
उसे अच्छा नहीं लगता।।।