यह खत है उस गुलदान के नाम जिसका फूल कभी हमारा था
वो जो अब तुम उसके मुख्तार हो तो सुन लो, उसे अच्छा नहीं लगता
मेरी जान के हकदार हो तो सुन लो, उसे अच्छा नहीं लगता
कि वो जब जुल्फ बिखेरे तो बिखरी ना समझना
अगर जो माथे पर आ जाए तो बेफिक्री ना समझना
दरअसल उसे ऐसे ही पसंद है।।
उसकी खुली जुल्फों में उसकी आजादी बंद है।
जानते हो अगर वो हजार बार जुल्फें ना संवारे तो उसका गुजारा नहीं होता
वैसे दिल बहुत साफ है उसका इन हरकतों को इशारा नहीं होता
खुदा के वास्ते-खुदा के वास्ते
कभी टोक ना देना उसकी आजादी से, उसे कभी रोक ना देना
क्यों कि अब मैं नहीं तुम उसके दिलदार हो तो सुन लो
उसे अच्छा नहीं लगता।।।
वो जो अब तुम उसके मुख्तार हो तो सुन लो, उसे अच्छा नहीं लगता
मेरी जान के हकदार हो तो सुन लो, उसे अच्छा नहीं लगता
कि वो जब जुल्फ बिखेरे तो बिखरी ना समझना
अगर जो माथे पर आ जाए तो बेफिक्री ना समझना
दरअसल उसे ऐसे ही पसंद है।।
उसकी खुली जुल्फों में उसकी आजादी बंद है।
जानते हो अगर वो हजार बार जुल्फें ना संवारे तो उसका गुजारा नहीं होता
वैसे दिल बहुत साफ है उसका इन हरकतों को इशारा नहीं होता
खुदा के वास्ते-खुदा के वास्ते
कभी टोक ना देना उसकी आजादी से, उसे कभी रोक ना देना
क्यों कि अब मैं नहीं तुम उसके दिलदार हो तो सुन लो
उसे अच्छा नहीं लगता।।।
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