Sunday, 31 December 2017

तारीखे कहाँ बदलती है....

तारीखे कहाँ बदलती है,
ये तो बदलते वक्त को बार-बार,
खुद दोहराती है...
गुजरी तारीखों में कैद कुछ यादो को,
हम उन्हीं तारीखों के लौट आने पर,
फिर उन्हें जीते हैं...
दर्द हो या खुशी, हम उलझे रहते है,
तारीखों के हेर-फेर में..
ये साल ये तारीखे,
सिर्फ कैलेंडर के साथ बदल जायँगे,
ये तारीखे तो कैलेंडर में,
फिर वापस आ जाएँगी,
पर जो बिछड़ गये हैं हमसे,
वो सिर्फ यादो में ही रह जायेंगे...
चलो हिसाब कुछ उन यादो का,
उन दर्दों का इन तारीखों का साथ कर लेते है...
तुम मिलना इस बार मुझे उन्हीं तारीखों में,
साथ बैठ कर कुछ बात फिर कर लेते है...
तारीखे कहाँ बदलती है,
ये तो बदलते वक्त को बार-बार 
खुद दोहराती है...!!!

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