लीजिये ये इक दिन निर्धारित किया गया है,
स्त्री के लिए, कहते है कि,
स्त्रियों के सम्मान के लिए ये दिन चुना गया है...
पर मैं आज तक समझ नही पाया,
कि क्या सच में किसी दिन की जरुरत पड़ती है,
स्त्री को सम्मान देने के लिए..
जो स्त्री सृष्टि को जन्म देती है,
जो खुद आदिशक्ति है..
क्या उसे किसी दिन की जरुरत है..
ये सिर्फ कुछ लोगो ने अपनी,
आत्मसंतुष्टि के लिए,
तीन सौ पैसठ दिन,
जिस स्त्री को नजर अंदाज करते है,
उन्होंने इक दिन बना दिया,
और ये जता दिया कि,
हम स्त्री का सम्मान करते है....
और स्त्री ने भी मुस्करा कर,
उनका ये इक दिन का सम्मान रख लेती है....
और पूछती है कि कभी कोई,
‘‘मैन डे’’ क्यों नही मनाया जाता?
क्यों कि इक स्त्री ने,
पुरुष को हमेशा सम्मान देती है,
पिता के रूप में, भाई के रूप में, पति के रूप में..
उसने सबकी भावनाओ को,
उनके बिना कहे समझा है,
बिना किसी स्वार्थ के, निश्छल,
हर रिश्ते को निभाती है...
तभी तो ये ‘वूमेन डे’ मानाने वालो को,
कभी ‘मैन डे’ की जरुरत नही महसूस की...
हम स्त्री के आत्मसम्मान की बात करते है,
पर हम ये भूल जाते है, कि
जिस स्त्री ने मां बनकर हमे सम्मान करना सिखाया है,
वो खुद अपने आत्मसम्मान की रक्षा कर सकती है,
और गर कही वो अपना आत्मसम्मान छोड़ती है,
तो इसका अर्थ ये नही कि,
वो कमजोर है, मुर्ख है..
बल्कि वो हमे बहुत प्यार करती है,
रिश्तों को संजोना जानती है...
इस सृष्टि में इक मात्र स्त्री ही है,
जो अपने रिश्तों के लिए,
किसी भी हद तक जा सकती है...
जिस स्त्री ने आपको अपने माथे पर सजा कर,
आपको जो सम्मान दिया है...
उसकी कीमत ये इक दिन ‘वुमेन डे’
तो नही हो सकता है...
चलिये इस बार कुछ ऐसा करिये,
कोई संकल्प ऐसा लीजिये,
कि आपको किसी भी स्त्री के लिए,
‘वुमेन डे’ ना मनाना पड़े...
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