Sunday, 24 June 2018

वो न जाने कब गैरों के होना सीख गए

वो प्यार मोहब्बत के अकीदतमंद बड़ी जल्दी नफरत करना सीख गए
हम तो उनके थे उन्हीं के रहे और वो न जाने कब गैरों के होना सीख गए

हम नावाकिफ थे इस बात से कि वो अजनबी इस कदर हो जायेंगे
नजर आते थे जो फोन के हर गलियारे में अब एक फोल्डर में सिमट कर रह जायेंगे
और हम नावाकिफ थे इस बात से कि वो इस रिश्ते को इतनी बेहरमी से तोड़ जायेंगे
कि हमे सबसे पहले जवाब देने वाले हमारा मैसेज को सीन करके छोड़ जायेंगे
हम शहरो-शाम मुनतजिर रहे उनके जवाबों के
और वो किसी दूसरी महफिल-ए चैट में रिप्लाई करना सिख गए
हम तो उनके थे उन्हीं के रहे और वो न जाने कब गैरों के होना सीख गए

और बड़ेे दिनों बात हमसे पूूछा हाल-ए-दिल उन्होंने
तो भईया हम भी खुद्दार थे मुस्कुराकर झूठ बोलना सिख गए
हम तो उनके थे उन्हीं के रहे और वो न जाने कब गैरों के होना सीख गए

हम नावाकिफ थे इस बात से कि लोग बदल भी जाया करते हैं
वो आंखों में आंखें डालकर किये हुए वादों से मुकर भी जाया करते हैं
और सदायंे आती थी जिनको हमारे सीने से
वो अब किसी और से लिपटना सिख गए
हम तो उनके थे उन्हीं के रहे और वो न जाने कब गैरों के होना सीख गए

और दिल में आशियां बनाया था जिन्हांेने
और अब हम जैसे ही आनलाईन आते हैं तो वो नजरे चुराकर आॅफलाइन होना सीख गए
हम तो उनके थे उन्हीं के रहे और वो न जाने कब गैरों के होना सीख गए

हम नावाकिफ थे इस बात से कि वो चेहरे को साफ और दिल को मैला रखते हैं
कुछ लोग हंसी ऐसे भी हैं जो खिलौने नहीं जज्बातों से खेला करते हैं
हम आशिक नादान थे ता-जिंदगी भीतर-बाहर एक से रहे
वो कम्बखत बेवफाई करते-2 रोजाना जिल्द बदलना सिख गए
हम तो उनके थे उन्हीं के रहे और वो न जाने कब गैरों के होना सीख गए

हमने उनके साथ अर्श के सपने देखे थे
और हुए हकीकत से रूबरू तो ख्वाहिशें कुचलना सीख गए
हम तो उनके थे उन्हीं के रहे और वो न जाने कब गैरों के होना सीख गए

हम नावाकिफ थे इस बात से कि वक्त हमारे इतना खिलाफ हो जायेगा
कि उनकी मेहंदी में वो चुपके से बनाया हुए मेरे नाम का वो आर अक्षर
इस कदर किसी और के नाम हो जाएगा
हम उनके नाम का हर्फ हथेली पर नहीं दिल पर लिखना चाहते थे
इसलिए दर्द होता रहा हर्फ बनता रहा और हम दिल कुरेदना सिख गए
हम तो उनके थे उन्हीं के रहे और वो न जाने कब गैरों के होना सीख गए

हम उनपे मरकर जीना चाहते थे
हुए अलहदा उनसे जब से जीते जी मरना सिख गए
हम तो उनके थे उन्हीं के रहे और वो न जाने कब गैरों के होना सीख गए

कि हम नावाकिफ थे इस बात से कि वो हमारे बिना भी रह सकते थे
जो फसाने उन्होंने हमसे कहे थे उतनी ही सिद्दत से किसी और से भी कह सकते थे
अरे हमने तो सोना समझ यूं पकड़े रखा था उनको
और वो कम्बखत धूल थे निकले कि बड़े इतमिनान से फिसलना सिख गए
हम तो उनके थे उन्हीं के रहे और वो न जाने कब गैरों के होना सीख गए

कि हम कुछ देर जो दूर हुए क्या थे उनसे
कि अब वो हमारे बिना ही रहना सीख गए
हम तो उनके थे उन्हीं के रहे और वो न जाने कब गैरों के होना सीख गए

Monday, 11 June 2018

मुझे फर्क नहीं पड़ता - Part-2

एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था
अब तो तू खुद मोहब्बत बन चली आए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता,
एक वक्त था जब तेरी परवाह किया करता था
अब तो तू मेरे खातिर फना भी हो जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता,
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

एक वक्त था जब तेरी आईडी के न जाने कितने चक्कर लगाता था
तेरी हर पोस्ट के हर स्टेटस के मायने निकाला करता था
लेकिन अब सुन ले जो मुसलसल खेला है फ्रैै्रन्ड व अनफ्रैै्रन्ड का खेल मेरे साथ
जा मेरी आईडी का ताजिंदगी भर तेरे नए आईडी लिस्ट में अनफ्रैै्रन्ड रख ले
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

याद कर वो वक्त महज तेरी डीपी देखकर मेरी धड़कने तेज हो जाया करती थी
अब तू चाहे कितनी भी अपनी खुबसूरत तस्वीर नये फेसबुक आईडी पर लगाले
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

एक वक्त था जब तुझे तकलीफ में देखकर मेरी आंखे भर आया करती थी
तुझे कोई खरोच भी आ जाए तो मेरी सांस अटक जाया करती थी
लेकिन अब सुन ले बेफिक्री का सुरूर है मुझमें कुछ ऐसा कि
अब तो कम्बखत तेरी सांसे भी थम जाये तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

हां अब तेरा कहना भी वाजिब कि इसे इश्क नहीं कहते
जो इस कविता को पढ़कर एक बेवफा को मेरी मोहब्बत पर शक हो जाए
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

एक वक्त था जब तेरे तौरे इश्क की मिशालें दिया करता था
प्यार मोहब्बत के मायने में बस कस्में वादे लिखा करता था
कि क्या कमाल हस्र किया है तूने वफा-दाराने-उल्फत का
कि अब ये सारा का सारा शहर बेवफा हो जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

हां माना कि तेरी खुबशुरती मशहूर है दुनियां जहां में
अब इस कविता से तेरी बेवफाई के चर्चे हो जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था


एक वक्त था जब तेरी एक झलक पाने को तरस जाया करता था
तू जिस आईडी पर आॅनलाइन नजर आती थी मैं बस वहीं ठहर जाया करता था
अरे बिठा रखा था जो मुद्दतों से इन पलकों पर मैंने
उसूलों से तो गिर गई है अब नजरांे से भी गिर जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

बदसिरत हो अगर तो ये फिजुल है ये खुबसूरती तुम्हारी
फिर खुदा तुम्हें हसीं चेहरे बख्श जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

एक वक्त था जब तुझे शहरों शाम बैठकर मनाया करता था
गुस्ताखियां तेरी हुआ करती थी और दरख्वास्तें मैं किया करता था
तेरी उस बेवजह रूठने को मनाया है मैंने न जाने कितनी दफा
कि अब ये पूरी की पूरी कायनात खफा हो जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

अरे जो मेरी ना हो सकी वो उसकी क्या होगी
अब भले कुछ वक्त के लिए किसी गैर का दिल बहल जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

एक वक्त था जब तेरी महक पाने को तू जहां से गुजरती थी मैं वहां से गुजरता था
जो हवा तूझे छुती है वो हवा मुझे छू जाएगी इस भरोसे से चलता था
अब तो सूफी हूं कि खुशबू है मेरी खुद की सांसों मेें
अब तो तू इस हवा में भी घुल जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

कि जब से मिट्टी होना पसंद आया है मुझको
फिर भले महलों में आशियां हो जाए तो 
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

खैर अब तुझसे ना नफरत है, ना मोहब्बत है कोई गिला शिकवा नहीं है
ना कुछ अनसुना है, ना अनकहा है, बचा कोई सिलसिला नहीं है
अरे महज इन कविताआंे मंे जिक्र बचा है तेरा
और सुन ले कि अब इतना ताल्लुक भी खत्म हो जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

राब्ता ना हो इन बेवफाओं तो ही बेहतर हो मेरे यार
फिर रिश्ता भले काफिर दिलों से हो जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था