Monday, 11 June 2018

मुझे फर्क नहीं पड़ता - Part-2

एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था
अब तो तू खुद मोहब्बत बन चली आए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता,
एक वक्त था जब तेरी परवाह किया करता था
अब तो तू मेरे खातिर फना भी हो जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता,
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

एक वक्त था जब तेरी आईडी के न जाने कितने चक्कर लगाता था
तेरी हर पोस्ट के हर स्टेटस के मायने निकाला करता था
लेकिन अब सुन ले जो मुसलसल खेला है फ्रैै्रन्ड व अनफ्रैै्रन्ड का खेल मेरे साथ
जा मेरी आईडी का ताजिंदगी भर तेरे नए आईडी लिस्ट में अनफ्रैै्रन्ड रख ले
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

याद कर वो वक्त महज तेरी डीपी देखकर मेरी धड़कने तेज हो जाया करती थी
अब तू चाहे कितनी भी अपनी खुबसूरत तस्वीर नये फेसबुक आईडी पर लगाले
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

एक वक्त था जब तुझे तकलीफ में देखकर मेरी आंखे भर आया करती थी
तुझे कोई खरोच भी आ जाए तो मेरी सांस अटक जाया करती थी
लेकिन अब सुन ले बेफिक्री का सुरूर है मुझमें कुछ ऐसा कि
अब तो कम्बखत तेरी सांसे भी थम जाये तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

हां अब तेरा कहना भी वाजिब कि इसे इश्क नहीं कहते
जो इस कविता को पढ़कर एक बेवफा को मेरी मोहब्बत पर शक हो जाए
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

एक वक्त था जब तेरे तौरे इश्क की मिशालें दिया करता था
प्यार मोहब्बत के मायने में बस कस्में वादे लिखा करता था
कि क्या कमाल हस्र किया है तूने वफा-दाराने-उल्फत का
कि अब ये सारा का सारा शहर बेवफा हो जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

हां माना कि तेरी खुबशुरती मशहूर है दुनियां जहां में
अब इस कविता से तेरी बेवफाई के चर्चे हो जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था


एक वक्त था जब तेरी एक झलक पाने को तरस जाया करता था
तू जिस आईडी पर आॅनलाइन नजर आती थी मैं बस वहीं ठहर जाया करता था
अरे बिठा रखा था जो मुद्दतों से इन पलकों पर मैंने
उसूलों से तो गिर गई है अब नजरांे से भी गिर जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

बदसिरत हो अगर तो ये फिजुल है ये खुबसूरती तुम्हारी
फिर खुदा तुम्हें हसीं चेहरे बख्श जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

एक वक्त था जब तुझे शहरों शाम बैठकर मनाया करता था
गुस्ताखियां तेरी हुआ करती थी और दरख्वास्तें मैं किया करता था
तेरी उस बेवजह रूठने को मनाया है मैंने न जाने कितनी दफा
कि अब ये पूरी की पूरी कायनात खफा हो जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

अरे जो मेरी ना हो सकी वो उसकी क्या होगी
अब भले कुछ वक्त के लिए किसी गैर का दिल बहल जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

एक वक्त था जब तेरी महक पाने को तू जहां से गुजरती थी मैं वहां से गुजरता था
जो हवा तूझे छुती है वो हवा मुझे छू जाएगी इस भरोसे से चलता था
अब तो सूफी हूं कि खुशबू है मेरी खुद की सांसों मेें
अब तो तू इस हवा में भी घुल जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

कि जब से मिट्टी होना पसंद आया है मुझको
फिर भले महलों में आशियां हो जाए तो 
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

खैर अब तुझसे ना नफरत है, ना मोहब्बत है कोई गिला शिकवा नहीं है
ना कुछ अनसुना है, ना अनकहा है, बचा कोई सिलसिला नहीं है
अरे महज इन कविताआंे मंे जिक्र बचा है तेरा
और सुन ले कि अब इतना ताल्लुक भी खत्म हो जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

राब्ता ना हो इन बेवफाओं तो ही बेहतर हो मेरे यार
फिर रिश्ता भले काफिर दिलों से हो जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

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