Thursday, 17 October 2019

मैं आज भी पगली सा हूँ....!!!

वो चाँदनी रात, वो तुम्हारी बाते...
तुम कुछ भी कहती मैं लिख रहा था,
तुम को अल्फाजों में बांध रहा था....
और तुम नाराज भी होती कि,
क्यों लिख रहा हूँ मैं...
मैं हर बार कहता कि,
तुम्हे अपने पास संजो कर रख रहा हूँ...
और हसँ कर तुम कह देती कि,
तुम बिलकुल पगले हो....
और मैं भी मान लेता की,
हाँ मैं पगला ही सही...
जब तुम बाते करती थी ना,
तुम्हे सुनने चाँदनी का चांद भी,
नंगे पाँव जमी उतर आता था..

मुझे बिलकुल भी अच्छा नही लगता कि,
तुम्हे कोई भी सुने..
तो मैं तुम्हारी बातो को,
हमेशा के लिए अपने अल्फाजों में...
बाँध लेता था...
आज भी वो चाँदनी की रात है,
वही चांद है...
वही तुम्हारी बाते तो है,
मैं आज भी पगला सा हूँ वैसे ही...
पर तुम नही हो...!!!

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