Sunday, 29 December 2019

ये साल भी जा रहा है, हर साल की तरह

ये साल भी जा रहा है,
हर साल की तरह,
कुछ ख्वाइशें पूरी होते-होते,
अधूरी रह गयी...
कुछ दर्द जिंदगी को जार-जार कर गए,
तो कुछ मरहम होठो पर,
हँसी के साथ आंसू लिए मिल गए...
शिकायत बहुत है, सवाल भी बेहिसाब थे..
सभी यूँ ही उदास अकेले,
पुरानी कैलेंडर की तरह रह गए,
तारीखों में जिंदगी सिमट गयी...
फिर नई यादो की तलाश में,

कुछ पाने की आस लिये,
कुछ बिखरे हुए विश्वास लिये,
इस की दहलीज पर,
हम भी खड़े है...
वो 4 साल की याद लिए
जो खो दिया है,उस दर्द में,
खुद को समेट कर,
जो पा लिया उस सुकून में
खुद को लपेट कर...
आने वाला साल का,
आगाज हम फिर करँगे,
तारीखे बदलेंगी जरूर,
कैलन्डर पलटते हैं पन्नो की तरह,
वक्त के साथ फिर,
दोहरायें जायेंगे हम सभी,
छूटता कुछ भी नही है इस जहाँ में,
सब यही रहता है,
सिर्फ उसकी सूरत बदल जाती है वक्त के साथ.
ये साल भी जा रहा है, हर साल की तरह....!!!

Thursday, 19 December 2019

सुनो दिसम्बर..जरा ठहरो..!!!

सुनो दिसम्बर..जरा ठहरो..
धीरे-धीरे गुजरो...
समेट तो लूं बिखरी हुई यादो को,
दर्ज तो कर लूँ दिल में कुछ तारीखों को,
जिनके साथ का वक्त कभी गुजरा नही...
बांध कर रख लूं...

उन्हें नजरो से जो छोड़ कर चले गए,
थाम लूं उन हाथो को,
जो बिछड़े तो है पर छूटे नही है...
सुनो दिसम्बर..जरा ठहरो..
जी तो लूँ उन लम्हो को,
जो ठहरें तो है पर अभी गुजरे नही है...

सुनो दिसम्बर..जरा ठहरो..!!!

Thursday, 17 October 2019

मैं आज भी पगली सा हूँ....!!!

वो चाँदनी रात, वो तुम्हारी बाते...
तुम कुछ भी कहती मैं लिख रहा था,
तुम को अल्फाजों में बांध रहा था....
और तुम नाराज भी होती कि,
क्यों लिख रहा हूँ मैं...
मैं हर बार कहता कि,
तुम्हे अपने पास संजो कर रख रहा हूँ...
और हसँ कर तुम कह देती कि,
तुम बिलकुल पगले हो....
और मैं भी मान लेता की,
हाँ मैं पगला ही सही...
जब तुम बाते करती थी ना,
तुम्हे सुनने चाँदनी का चांद भी,
नंगे पाँव जमी उतर आता था..

मुझे बिलकुल भी अच्छा नही लगता कि,
तुम्हे कोई भी सुने..
तो मैं तुम्हारी बातो को,
हमेशा के लिए अपने अल्फाजों में...
बाँध लेता था...
आज भी वो चाँदनी की रात है,
वही चांद है...
वही तुम्हारी बाते तो है,
मैं आज भी पगला सा हूँ वैसे ही...
पर तुम नही हो...!!!

Sunday, 22 September 2019

कैसे मैं लिखूं तुम पर कुछ तुम तो खुद में एक रचना हो

कैसे मैं लिखूं तुम पर कुछ तुम तो खुद में एक रचना हो
थोड़ी अलहड़ थोड़ी पागल एक कुचे में भरा सागर
आंखें तेरी मदीरा की गागर
बातों में जज्बात छुपे हैं मुस्कानों में हालात छिपे हैं
थोड़ी वृद्धि, थोड़ा बुद्धि, थोड़ा भोलापन, थोड़ा बचपन
सबका तू अनोखा मिश्रण
कई राज छिपाये बैठी है,
कई दावं लगाये बैठी है
कुछ सपनों में वो जीती है



कुछ सपनों को वो जीती है
ये दुनिया के वो सारे
धोखे दो आंखों से पीती है
एक अजब-गजब सी वो कहानी
जिसने पढ़ी बस उसने जानी
सह बनती वो मेरे लिए भी वो
जब मुझे खुद से बचना हो
कैसे मैं लिखूं तुम पर कुछ तुम तो खुद में एक रचना हो।

Sunday, 8 September 2019

वो एक कप कॉफी का साथ...

बस कुछ लम्हे होते थे हमारे पास....
और उन लम्हों में करनी होती थी......
हमें हजारों बात.......!
मेरे साथ होते हुए भी....
दुसरो को देखती.......
तुम्हारी वो शरारती आंखे..
उतनी ही शरारती थी...........
तुम्हारी वो बाते...............
तुम्हारी हर बात पर.......
मेरी मुस्कराती आखों का जवाब.....
कुछ यू था......
तुम्हारे साथ एक कप कॉफी का साथ......!!

सबसे नजर हट कर....
जब तुम्हारी मुझ पर नजर टिकती थी.....
तो कुछ सहम कर तुम्हारे चहरे से....
मैं नजरे फेर लेता था......
डरता था की कही....
तुम पढ़ न लो मेरी नजरो में......
मेरी दिल की बात.............
वो तुम्हारे कुछ पूछने पर......
मेरा मुस्करा देना.............मैं कुछ कहूँगां.....
तुम्हारी नजरो का वो इन्तजार करना...
नही पता की कॉफी कैसी थी......
नही जानता की......
वो वक्त क्यों इतनो जल्दी गुजर रहा था....
मैं उस गुजरते वक्त को थामना चाहता था........
तुम्हारे हाथ को थाम कर........
कुछ देर और बैठना चाहता था..........
कुछ यू था......
तुम्हारे साथ, एक कप कॉफी का साथ......!!

Friday, 5 July 2019

एक वादी है जिसका नाम पार्वती है

एक वादी है जिसका नाम पार्वती है,
दो जहां से परे हैं,
मेरी दुनिया से थोड़ी अलग है,
लम्बे-लम्बे पहाड़ों पर कुछ रंग बिरंगी छते हैं !
यहां गांव की गीली गलियों के हर मोड़ पर,
मिल जाती है एक अनजानी सी मुस्कान,
जो बना देती है मुश्किल रास्तों को थोड़ा आसान !!
दीवाने कई थे मेरी तरह यहां,
कुछ हिमालय के तो कुछ चरस के,
नशे में मैं भी रहा हमेशा,
पर वो नशा इश्क़ था !!!
इश्क़ उन वादियों से,

उस हवा से जिसमें जानी पहचानी खुशबू थी,
उन लोगों से जिनसे मुस्कुराहटों का रिश्ता बन गया था,
उन गांव के टूटे मकानों से जिन में मेरे घर का एहसास था !!!
अब हर याद में है वो पहाड़ जिनसे बातें करता था मैं,
वो रास्ते जिनपर अपने आप को पाया मैंने,
वो कुछ पल की यारियां,
उन मुसाफिरों से जिनसे फिर टकराने की उम्मीद है,
और वो घर जिसको अपना बनाने का ख्वाब है !!!!
जब भी सोचता हूं तो जस्बात उमड़ जाते हैं दिल में,
एक बार फिर गले लगाना चाहता हूं
अपने उस अक्स को जिसको छोड़ आया हूं
उस वादी में कहीं,
वो वादी जिसका नाम है पार्वती!!!