Sunday, 31 December 2017

तारीखे कहाँ बदलती है....

तारीखे कहाँ बदलती है,
ये तो बदलते वक्त को बार-बार,
खुद दोहराती है...
गुजरी तारीखों में कैद कुछ यादो को,
हम उन्हीं तारीखों के लौट आने पर,
फिर उन्हें जीते हैं...
दर्द हो या खुशी, हम उलझे रहते है,
तारीखों के हेर-फेर में..
ये साल ये तारीखे,
सिर्फ कैलेंडर के साथ बदल जायँगे,
ये तारीखे तो कैलेंडर में,
फिर वापस आ जाएँगी,
पर जो बिछड़ गये हैं हमसे,
वो सिर्फ यादो में ही रह जायेंगे...
चलो हिसाब कुछ उन यादो का,
उन दर्दों का इन तारीखों का साथ कर लेते है...
तुम मिलना इस बार मुझे उन्हीं तारीखों में,
साथ बैठ कर कुछ बात फिर कर लेते है...
तारीखे कहाँ बदलती है,
ये तो बदलते वक्त को बार-बार 
खुद दोहराती है...!!!

Wednesday, 27 December 2017

रूहे गुफ्तगु

रूह - सुनो कहां गुम हो आजकल
राशिद - यहीं तो हूं
रूह - कहां यहीं हो, इतने दिन हो गये कोई शायरी नहीं सुनाई, कुछ लिखा नहीं क्या
राशिद- मैं लिखता नहीं हूं
रूह - कब से
राशिद - हमेशा से
रूह - तो फिर ये कविताएं जो तुमने लिखी है।
राशिद - तुम इन्हें कविताएं कहती हो, ये कविताएं नहीं होते बाते होती हैं
रूह - बातें

राशिद - हां, बातें जो मैं कागज से करता हूं, वो कुछ कहता नहीं, सिर्फ सुनता है। मगर सबकुछ समझता है।
रूह - तो क्या इतने दिन कागज से कोई बात नही की?
राशिद - की थी ना बस सुनाया नहीं।
रूह - क्यों।
राशिद - पता नहीं, शायद मैं कुछ देर दूर रहना चाहता था। चुप रहना चाहता था, सुनाना नहीं सुनना चाहता था। हां इन सबसे अपने आपसे किया हुआ वादा भूल गया था।
रूह - वादा, कैसा वादा।
राशिद - यही जिंदगी की हर राह पर रूकना नहीं है, याद आया वो वादा जो हम दोनों ने किया था। क्या लगता है?

Monday, 20 November 2017

कभी तुम मुझे अखबारों में ढूंढोगी,

कभी तुम मुझे अखबारों में ढूंढोगी,



मेरी रची पंक्तियो में, तुम मेरी सांसे गिनोगी....
मैं कहाँ हूँ, कैसा हूँ...
इन सवालो के जवाब पाने को बेचैन रहोगी..
जब मैं लिखता था सिर्फ,
तुम्हारे लिए, तब तुमने कभी पढ़ा नही..
अब जब मेरी रचना आती है अखबारो में,
तुम उनमे खुद को ढूंढोगी...

कभी तुम मुझे अखबारों में ढूंढोगी,

तुमको छोड़ कर सब कुछ लिखूंगा...........

जब तुम नही होती हो...
अपनी एक डायरी और एक कलम..
कुछ स्याही लेकर फिर बैठा हूँ....
तुमको छोड़ कर सब कुछ लिखूंगा,
आज ये सोच कर बैठा हूँ....



लिखने के लिए कलम भी बेताब है,
पर कोई ख्याल आता ही नही....
तुमको जो छोड़ता हूँ तो,
ये अल्फाज मुझे छोड़ देते हैं
क्यों एहसासो को अल्फाजों में बांध नहीं पाता हूँ,
जब तुम नही होती हो तो...
क्यों अल्फाजों में यकीन नही ला पाता हूं,
जब तुम नही होते हो तो...
क्यों जिंदगी तुमसे शुरू...
तुम पर ही खत्म होती है....
क्यों मुझे सवालो के जवाब नही मिलते,
जब तुम नही होती हो तो.....
क्यों गुजरता है सिर्फ सफर मंजिल नही मिलती,
जब तुम नही होते हो तो....
ये तुम्हारे प्यार का असर है,
या मेरी जिद है कि खुद में तुमको शामिल करने की....
एक दिवार सी बना रखा है.....
तुम्हारे नाम की
खुद को कैद कर रखा है.......
तुम्हारे प्यार में
तुम तो कब की जा चुकी हो...
मेरी राहो से मेरी मंजिलो को छोड़ कर...
मैं ही हूँ तुमको छोड़ता ही नही,
या छोड़ना चाहता ही नही.....
खुद को तुमसे बांध कर बैठा हूँ....
तुमको छोड़ कर सब कुछ लिखूंगा,
आज ये सोच कर बैठा हूँ.....!!!

Sunday, 12 November 2017

मेरी जिंदगी.......


थोड़ा थक सा जाता हूं अब मैं....
इसलिए, दूर निकलना छोड़ दिया है,
पर ऐसा भी नहीं है कि अब....
मैंने चलना ही छोड़ दिया है।

फासलें अक्सर रिश्तों में...
अजीब जी दूरियां बढ़ा देते हैं,
पर ऐसा भी नहीं है कि अब मैंने...
अपनों से मिलना ही छोड़ दिया है।

हाॅं जरा सा अकेला महसूस करता हूं...
खुद को अपनों की ही भीड़ में,
पर ऐसा भी नहीं है कि अब मैंने...
अपनापन ही छोड़ दिया है।

याद तो करता हूं मैं सभी को...
और परवाह भी करता हूं सब की,
पर कितनी करता हूं...
बस बताना छोड़ दिया।।

Sunday, 22 October 2017

मैं तुम्हे फिर मिलूंगा

मैं तुम्हे फिर मिलूंगा
कहां कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरूंगा
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीन बन
खामोश तुझे देखता रहूंगा
मैं तुम्हे फिर मिलूंगा
कहां कैसे पता नहीं
या सूरज की लौ बन कर
तेरे रंगों में घुला रहूंगा
या रंगों की बांहों में बैठकर
तेरे केनवास पर बिछ जाउंगा
पता नहीं कहां किस तरह
पर तुझे जरूर मिलूंगा
या फिर एक चश्मा बन
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूंदे
तेरे बदन पर मलूंगा
और एक शीतल एहसास बनकर
तेरे से सीने से लगूंगा
मैं और तो कुछ नहीं जानता
पर इतना जानता हूं कि
वक्त जो भी करेगा
यह जन्म मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म खत्म होता है
तो सब कुछ खत्म हो जाता है
पर यादों के धागे
कायनात के लम्हों की तरह होते हैं
मैं उन लम्हों को चुनूंगा
उन धागों को समेट लूंगा
मैं तुम्हे फिर मिलूंगा
कहां कैसे पता नहीं
लेकिन
मैं तुम्हे फिर जरूर मिलूंगा।

Friday, 20 October 2017

तुम्हारा ही कहलायेगा......!!!


मैं आज भी इक दीया,
तुम्हारी दहलीज पर रख आता हूँ,
कि मेरे दीये का उजाला,
तुम्हे अंधेरो से बचायेगा.....
जब भी दीये की लहराती,
जलती बाती पर तुम्हारी नजर जायेगी,
तुम्हे कुछ याद आयेगा और,
होंठो पर तुम्हारे मुस्कान आएगी..
मैं कहूँ न कहूँ किसी से,
तुम बताओ या ना बताओ किसी से..
तुम्हारी दहलीज़ पर रखा मेरा दीया,
तुम्हारा ही कहलायेगा......!!!

Tuesday, 17 October 2017

उसे अच्छा नहीं लगता

यह खत है उस गुलदान के नाम जिसका फूल कभी हमारा था
वो जो अब तुम उसके मुख्तार हो तो सुन लो, उसे अच्छा नहीं लगता
मेरी जान के हकदार हो तो सुन लो, उसे अच्छा नहीं लगता
कि वो जब जुल्फ बिखेरे तो बिखरी ना समझना
अगर जो माथे पर आ जाए तो बेफिक्री ना समझना
दरअसल उसे ऐसे ही पसंद है।।

उसकी खुली जुल्फों में उसकी आजादी बंद है।
जानते हो अगर वो हजार बार जुल्फें ना संवारे तो उसका गुजारा नहीं होता
वैसे दिल बहुत साफ है उसका इन हरकतों को इशारा नहीं होता
खुदा के वास्ते-खुदा के वास्ते
कभी टोक ना देना उसकी आजादी से, उसे कभी रोक ना देना
क्यों कि अब मैं नहीं तुम उसके दिलदार हो तो सुन लो
उसे अच्छा नहीं लगता।।।

Sunday, 24 September 2017

इस लायक नहीं हो तुम

कि मेरे कुछ सवाल है जो सिर्फ कयामत के रोज पूछूंगा तुमसे, क्यों कि उसके पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके इस लायक नहीं हो तुम।

मैं जानना चाहता हूं कि क्या उसके साथ भी चलते हुए शाम को यूंही बेख्याली में उसका हाथ तुम्हारे हाथ से टकरा जाता है क्या, क्या अपनी छोटी उंगली से उसका भी हाथ थाम लिया करती हो, क्या वैसे ही जैसा मेरा थामा करती थी।

क्या बता दी सारी बचपन की कहानियां तुमने उसको, जैसे मुझको रात-रात भर बैठकर सुनाई थी तुमने।

क्या तुमने बताया उसको की तुमको रातों को आइस्क्रीम खाने का मन होता है, क्या वो भी सर्द रातों में तुम्हे रातों को आइस्क्रीम खिलाता है, क्या वैसे ही जैसे मेरे साथ खाया करती थी।

वो सारी तस्वीरें हैं जो तुम्हारे सहेलियों के साथ, तुम्हारी पापा के साथ है, तुम्हारी बहन के साथ तुम्हारे थी जिनमें तुम बड़ी प्यारी लगी। क्या उसे भी दिखा दी तुमने।

ये कुछ सवाल है जो कयामत के रोज पूछूंगा तुमसे, क्यों कि उसके पहले तुम्हारी और मेरी बात सके, इस लायक नहीं हो तुम।

मैं पूछना चाहता हूं कि क्या वो भी तुम्हे जब घर छोड़ने आता है तुमको तो सीढ़ियों पर आंखे नीचकर क्या मेरी ही तरह उसके सामने भी माथा आगे कर देती हो क्या वैसे ही जैसा मेरे सामने किया करती थी।।

क्या सर्द रातों में बंद कमरों में क्यां वो भी मेरी ही तरह तुम्हारी नंगी पीठ पर अपनी उंगलियों से हर्फ-दर-हर्फ खुद का नाम गोदता है और तुम भी क्या अक्षर-बा-अक्षर पहचाननेकी कोशिश करती हो, क्या वैसे ही जैसे मेरे साथ किया करती थी।

ये कुछ सवाल है जो कयामत के रोज पूछूंगा तुमसे, क्यों कि उसके पहले तुम्हारी और मेरी बात,
इस लायक नहीं हो तुम।।

Saturday, 5 August 2017

मित्रता की कसौटी


जन्म लेते ही कितने रिश्ते बन जाते हैं मां-पिता, भाई-बहन, दादा-दादी, नाना-नानी आदि। पर एक रिश्ता ऐसा है, जो जन्मजात नहीं है। वह है दोस्ती की। बचपन में स्कूली दोस्त होते हैं। कोई ‘बेस्ट फ्रेन्ड’ होता है, तो कोई खेल का साथी। समय के साथ बदलाव आता रहता है। हालांकि इन्हीं में कोई एक बड़े होने पर भी बना रहता है, वहीं लंगोटिया यार कहलाता है। अधिकतर दोस्त बड़े होने पर बनते हैं, और वे टिकाऊ होते हैं। अक्सर दोस्त हमारे पूरक होते हैं। जो विशेषताएं हमारे व्यक्तित्व में नहीं होती, यदि वे किसी दूसरे में मिलते हैं, तो परस्पर आकषर्ण स्वाभाविक है। महत्वकांक्षी चन्द्रगुप्त ने युक्तिवान चाणक्य से मित्रता की। गंभीर प्रकृति के अकबर के दोस्त चतुर व विनोदी बिरबल थे। किसी मनुष्य का स्वभाव जानने के लिए उसके दोस्तों की उसबे बारे में क्या राय है, यह जानना काफी होता है। 

धीरे-धीरे गहन होती दोस्ती कभी टूटती नहीं। कहते हैं कि दोस्ती एक वृक्ष की तरह होती है। शुरू में उसकी देखरेख करनी पड़ती है। फलने-फूलने पर वही जीवन भर हमें शीतल छाया प्रदान करता है। दोस्ती करने से पहले यह निश्चित कर लेना जरूरी है कि निःस्वार्थ व्यक्ति है। कहीं हमारी धन-संपदा तो उसके आकषर्ण का केन्द्र तो नहीं। ऐसे लोग बुरे दिन आने पर छिटक कर अलग हो जाते हैं। पंजाबी की एक कहावत है ‘लड्डू मुक गए याराने टूट गए, ते सारी लड्डुआं दी’ यानि दोस्ती लड्डू खाने के लिए थी, वे खत्म हुए तो यारी भी खत्म। ऐसे दोस्तों से बचने में ही भलाई है। रामचरितमानस में राम ने सुग्रीव की व्यथा-कथा सुनकर उसकी सहायता का वचन दिया और दोस्ती की कसौटी को भी पूरा किया। उनके अनुसार, जो अपने दोस्त के दुख से दुखी नहीं होता- उसे देखना भी पाप है। दूसरी ओर, जो अपने पर्वत समान दुख को भूल और दोस्त के धूल समान दुख को अपना सा समझता है, वही सच्चा दोस्त बनने के लायक होता है।

Happy Friendship Day 

Friday, 14 July 2017

अब फर्क कम पड़ता है

ऐसा नहीं है कि
तुम अब बेअसर हो,
हाँ, मगर अब फर्क
कुछ कम पड़ता है।
अब भी तुम्हारा
नाम कहीं देखकर,
दिल तेज धड़कता है।
अब भी तुम्हारी इक झलक के लिए
ताका-झांकी करता है।
हाँ, मगर अब
बेचैन सा कम रहता है।
वो आधी सुबह, आधी शाम
की छेड़ा छाड़ी, घंटो इंतजार।
सब याद है अब भी,
हाँ, मगर अब तुम्हारा अक्स
कुछ धुंदला सा गया है।
सोचा नहीं था कि इस
तरह तुम बदल जाओगी।
तुमसे एक लफ्ज सुनने
और अपने किस्से सुनाने
को भी तरस जाऊंगा।
बहुत कुछ बदल गया है,
और कुछ बातों का जिक्र,
ना हो तो ही अच्छा है।
तुम्हें भूलना मुमकिन नही है,
तुम्हे दूसरों के साथ खुश देखकर
दिल अब भी जलता है।
मगर हाँ,अब फर्क कम पड़ता है।

Wednesday, 12 July 2017

आपके शहर में



तोड़कर हर कसम आपके शहर में
आ गए आज हम आपके शहर में...........

एक ना एक दिन मुलाकात हो जाएगी
आते रहते हैं हम आपके शहर में......

जो मेरे आंसुओं का लिखा पढ़ सके
लोग ऐसे हैं कम आपके शहर में.......

शहर ये आपका है हमारा नहीं
भूल जाते हैं आपके शहर मंे.......

ऐसे वैसे कई देखते-देखते
हो गए मोहतरम आपके शहर में.........

आप इतनी मोहब्बत करेंगे अगर
मर ही जायेंगे हम आपके शहर में........

होके वो रह गया आपके शहर का
जिसने रखा कदम आपके शहर में......

ये तमन्ना है राशिद चलेंगे कभी

आपके साथ, हम आपके शहर में।।